आंत के कैंसर (कोलन कैंसर) के मामले पिछले दिनों युवाओं में तेजी से बढ़े हैं। इसे कोलोरेक्टल या रेक्टल कैंसर भी कहा जाता है। भारत में आंत का कैंसर 7वां सबसे बड़ा कैंसर है, जिसके कारण हजारों लोग मरते हैं। ये कैंसर आमतौर पर बड़ी आंत में होता है। इस कैंसर की मुश्किल ये है कि इसका पता लगाना बहुत कठिन है। दरअसल किसी व्यक्ति को आंत का कैंसर होने के बावजूद उसे शुरुआत में कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। कैंसर जब काफी हद तक बढ़ चुका होता है, तब उसे जो लक्षण दिखना शुरू भी होते हैं, वो इतने सामान्य होते हैं कि व्यक्ति कुछ समय तक नजरअंदाज करते रहते हैं। ऐसा होने पर कैंसर बढ़ता जाता है और जब तक इसकी जांच होती है, तब तक ये खतरनाक रूप ले चुका होता है।
युवाओं में बढ़े मामले
हाल में आंत के कैंसर के 1195 मरीजों पर एक रिसर्च की गई। इन मरीजों की उम्र 20 से 49 साल थी। इनमें से 57% मरीज ऐसे थे, जिन्हें आंत के कैंसर का पता 40 से 49 साल की उम्र के बीच चला। वहीं लगभग 30% मरीज ऐसे थे, जिन्हें 30 से 39 साल के बीच कैंसर का पता चला। सिर्फ 10% मरीजों के 30 साल से कम उम्र में कैंसर का पता चला।
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इस शोध से ये बात समझ आ जाती है कि कोलन कैंसर का पता शुरुआती स्टेज में चलना बहुत मुश्किल है। वैसे तो सामान्य लोग यही मानते हैं कि आंतों के कैंसर का खतरा 50 साल से बड़ी उम्र के लोगों को होता है। मगर आजकल खानपान की गड़बड़ियों और खाने-पीने की चीजों में केमिकल्स-फर्टिलाइजर्स के इस्तेमाल के कारण कम उम्र के युवाओं और बच्चों को भी आंत का कैंसर हो रहा है।
तीसरे या चौथे स्टेज पर चलता है इस कैंसर का पता
रिसर्च बताती है कि ज्यादातर आंत के कैंसर का पता तीसरे या चौथे स्टेज में चलता है और तब तक काफी देर हो चुकी होती है। ऐसा नहीं है कि शुरुआती अवस्था में मरीज को कोई परेशानी नहीं होती है। बल्कि होता यह है कि लक्षण सामान्य होने के कारण लोग इसे कैंसर के बजाय कोई हल्की-फुल्की बीमारी समझ लेते हैं। इसी रिसर्च में लोगों ने खुद बताया कि लक्षणों की शुरुआत के बाद भी डॉक्टर के पास जाने में लोगों ने 3 से 12 महीने तक इंतजार किया।
डॉक्टर्स बताते हैं कि अगर आंत के कैंसर का पता पहली स्टेज में चल जाए, तो इसका इलाज 90% तक संभव होता है और मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है। लेकिन तीसरे-चौथे स्टेज तक पहुंच जाने पर इसका इलाज 30 से 50 प्रतिशत तक सफल होने की ही संभावना रहती है।